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यद्वासि॑ सुन्व॒तो वृ॒धो यज॑मानस्य सत्पते । उ॒क्थे वा॒ यस्य॒ रण्य॑सि॒ समिन्दु॑भिः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yad vāsi sunvato vṛdho yajamānasya satpate | ukthe vā yasya raṇyasi sam indubhiḥ ||

पद पाठ

यत् । वा॒ । असि॑ । सु॒न्व॒तः । वृ॒धः । यज॑मानस्य । स॒त्ऽप॒ते॒ । उ॒क्थे । वा॒ । यस्य॑ । रण्य॑सि । सम् । इन्दु॑ऽभिः ॥ ८.१२.१८

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:12» मन्त्र:18 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:4» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:18


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शिव शंकर शर्मा

पुनः प्रार्थना का विधान करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (सत्पते) सत्यव्रतियों के रक्षक परमदेव ! तू (यद्वा) यद्यपि (सुन्वतः) सुकर्मों को करते हुए (यजमानस्य) समस्त यजनशील पुरुष का (वृधः+असि) पालन-पोषण करनेवाला होता है (वा) और (यस्य) जिस किसी के (उक्थे) प्रशंसित वचन में (रण्यसि) आनन्दित होता है। तथापि (इन्दुभिः) हमारे पदार्थों के साथ भी (सम्) आनन्दित हो ॥१८॥
भावार्थभाषाः - हे ईश ! जिस हेतु तू सबका रक्षक है, अतः मेरी भी रक्षा कर ॥१८॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सत्पते) हे सज्जनों के पालक ! (यद्वा) और जो (सुन्वतः) यज्ञ करनेवाले (यजमानस्य) याज्ञिक के (वृधः) वृद्धिकारक (असि) आप हैं, (यस्य) जिसके (उक्थे) स्तोत्र करने पर (इन्दुभिः) दीप्तियों के साथ (संरण्यसि) सम्यक् विराजमान होते हैं ॥१८॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वान् तथा सज्जनों के पालक, पोषक तथा रक्षक परमात्मन् ! आप याज्ञिक पुरुषों के सदा सहायक तथा वृद्धि करनेवाले हैं। याज्ञिक लोग स्तोत्रों द्वारा आपकी सम्यक् स्तुति करते और आप योग देकर उनके यज्ञों को भले प्रकार पूर्ण करते हैं ॥१८॥
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शिव शंकर शर्मा

पुनः प्रार्थना विधीयते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे सत्पते=सतां सत्यव्रतानां पालक ! इन्द्र ! यद्वा=अथवा यद्यपि। सुन्वतः=सुकर्माणि कुर्वतः। यजमानस्य=यजनशीलस्य पुरुषस्य। वृधः=वर्धयिता। असि=भवसि। वा=अथवा। यस्य=कस्यचित् पुरुषस्य। उक्थे=प्रशंसितवचने। रण्यसि=आनन्दसि प्रसीदसि। तथापि। अस्माकम्। इन्दुभिः=पदार्थैरपि सह। त्वं संरमस्व ॥१८॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सत्पते) हे सतां पालक ! (यद्वा) अथ च (सुन्वतः) यज्ञं कुर्वतः (यजमानस्य) याज्ञिकस्य (वृधः, असि) वर्धको भवसि (यस्य) यस्य (उक्थे) स्तोत्रे कृते (इन्दुभिः) दीप्तिभिः (संरण्यसि) संरमसे ॥१८॥